अध्याय एवं विषयों का अनुक्रम
प्रथम अध्याय: अर्जुन विषाद योग 7
दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन 7
दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन 7
अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग 7
मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन 8
दूसरा अध्याय: सांख्ययोग 9
अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद 9
सांख्ययोग का विषय 9
क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण 10
कर्मयोग का विषय 10
स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा 11
तीसरा अध्याय: कर्म योग 12
ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण 12
यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण 13
ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता 13
अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा 13
काम के निरोध का विषय 14
चौथा अध्याय: ज्ञानकर्म सन्यास योग 15
सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय 15
योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा 15
फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन 16
ज्ञान की महिमा 16
पांचवां अध्याय: कर्म संन्यास योग 17
सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय 17
सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा 17
ज्ञानयोग का विषय 17
भक्ति सहित ध्यानयोग का वर्णन 18
छठा अध्याय:आत्म संयम योग 18
कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण 18
आत्म-उद्धार के लिए प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुष के लक्षण 19
विस्तार से ध्यान योग का विषय 19
मन के निग्रह का विषय 20
योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा 20
सातवाँ अध्याय: ज्ञान विज्ञान योग 21
विज्ञान सहित ज्ञान का विषय 21
संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन 21
आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा 21
अन्य देवताओं की उपासना का विषय 22
भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा 22
आठवां अध्याय: अक्षरब्रह्म योग 22
ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर 22
भक्ति योग का विषय 23
शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय 23
नवां अध्याय: राजविद्या राजगुह्य योग 24
प्रभावसहित ज्ञान का विषय 24
जगत की उत्पत्ति का विषय 24
भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार 24
सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन 24
सकाम और निष्काम उपासना का फल 25
निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा 25
दसवां अध्याय: विभूतियोग 26
भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल 26
फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन 26
अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना 26
भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन 27
ग्यारहवां अध्याय: विश्वरूप दर्शन योग 28
विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना 28
भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन 28
संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन 29
अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना 29
भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना 30
भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना 30
भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना 31
बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन। 31
बारहवां अध्याय: भक्ति योग 31
साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय 31
भगवत्-प्राप्त पुरुषों के लक्षण 32
तेरहवां अध्याय: क्षेत्रक्षत्रज्ञ विभाग योग 32
ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय 32
ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय 33
चौदहवां अध्याय: गुणत्रयविभागयोग 34
ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति 34
सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय 34
भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण 35
पन्द्रहवां अध्याय: पुरुषोत्तम योग 35
संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय 35
जीवात्मा का विषय 36
प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का विषय 36
क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय 36
सोलहवां अध्याय: दैवासुर संपद्विभाग योग 37
फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन 37
आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन 37
शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा 38
सत्रहवां अध्याय: श्रद्धात्रय विभाग योग 38
श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय 38
आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद 38
ॐतत्सत् के प्रयोग की व्याख्या 39
अठारहवां अध्याय: मोक्ष संन्यास योग 39
त्याग का विषय 39
कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन 40
तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद 40
फल सहित वर्ण धर्म का विषय 41
ज्ञाननिष्ठा का विषय 42
भक्ति सहित कर्मयोग का विषय 42
श्री गीताजी का माहात्म्य 42